यह तब की बात है
जब मैंने एक गुलाबी झील में हिचकिचाते हुए पैर रखा था
बंद लिफाफे खुलने से डरने लगे
कांपती उंगलियों से सिकोडे रहे खुद को
जैसे उनमें से तितलियों के पंख लगा कर
अक्षर शब्द बनकर उडानें भरने लगेंगें
और लिफाफों में बंद तस्वीरें बोलने लगेंगी
मैं आसमान में बैठे बादलों के बेहिसाब झुंड में से
किसी एक में छिप जाना चाहती हूँ
बूंद बूंद बह जाना चाह्ती हूँ बारिश के संग
तब वो घूरती आंखे कितनी बूंदो को इक्क्ठा करेंगी
और मुझे दोबारा बनाएंगी
मैं दस सूरज देखती हूँ
और एक की ओट लेती हूँ
यकीनन वो घूरती आंखे वहाँ पिघल जाएंगी
मै उन लिफाफों को जबरन बंद करती हूँ
इस कोशिश में
मेरे हाथ से लगकर पास रखा पारदर्शी फूलदान गिर जाता है
और गिर जाते हैं वो सूखे फूल
जो प्रेम का आग्रह थे...
जन्मदिन की बधाई थे...
और कुछ बस यू ही थे...
वे वैसे ही थे कि वो सूखे ही थे
इस झील में कोई हंस मोती बटोर रहा था
पगला कहीं का......
श्री...