स्वप्नरेखायें .............
आडी-तिरछी.......अबूझ पहेलियां और तपते रहस्य
एक के बाद एक सब में डूबते गये.....
जीवन के सूक्ष्मतम तत्व को आत्मा में ग्रहण करते ....
समाधिष्ट होते तत्वों के नन्हें तंतु सुनते.....
शब्द सुनने की कोशिश में मौन को पीते
जिस्मों की अबोली भाषा से....
देह के कमल रहस्यों में खुद को खोजते
जैसे कोई अधूरी कविता को दोहराता है बार-बार.....
तब.....
एक तल खुलता है नया.....जिस पर पावं रखते ही हम तैरने लगते हैं
अपनी-अपनी समाधियों के नव-शिल्पों की शीतल धारा में......
धीरे-धीरे उतरने लगती है रात
शिथिल आत्माओं की सफेद चादरों पर.........
हम चूमते हैं उंगलियां एक-दूसरे की, विस्तारित रात के पाखियों की कलरव में.....
टांगते जाते हैं एक-दूसरे के अनकहे शब्द..... बोधि वृक्ष की शाखों पर...
हम सोते हैं बुद्ध की आंखों में
और जागते हैं बुद्ध की ही आंखों में.........
श्री...............
आडी-तिरछी.......अबूझ पहेलियां और तपते रहस्य
एक के बाद एक सब में डूबते गये.....
जीवन के सूक्ष्मतम तत्व को आत्मा में ग्रहण करते ....
समाधिष्ट होते तत्वों के नन्हें तंतु सुनते.....
शब्द सुनने की कोशिश में मौन को पीते
जिस्मों की अबोली भाषा से....
देह के कमल रहस्यों में खुद को खोजते
जैसे कोई अधूरी कविता को दोहराता है बार-बार.....
तब.....
एक तल खुलता है नया.....जिस पर पावं रखते ही हम तैरने लगते हैं
अपनी-अपनी समाधियों के नव-शिल्पों की शीतल धारा में......
धीरे-धीरे उतरने लगती है रात
शिथिल आत्माओं की सफेद चादरों पर.........
हम चूमते हैं उंगलियां एक-दूसरे की, विस्तारित रात के पाखियों की कलरव में.....
टांगते जाते हैं एक-दूसरे के अनकहे शब्द..... बोधि वृक्ष की शाखों पर...
हम सोते हैं बुद्ध की आंखों में
और जागते हैं बुद्ध की ही आंखों में.........
श्री...............