देह से जुडी स्मृतियाँ
परिष्कृत करती है आत्मा
कितनी ही तहें खुलती हैं
एक के बाद एक.....
हर युग के घाट पर
अपना कुछ हिस्सा छोड़ती हुई......
घाट..... स्नेह का
प्रेम का
मृत्यु का......
और उस सम्मोहन का भी
जिसे बांधा था
उस असीमित रात में
और
खोजी थी एक नई लिपि......
स्वप्न सम्भोग की.......
तपता रहा संताप... जीवन और मृत्यु के बीच
जपते रहे नाम ........ एक दूसरे का
छूते रहे हर हद आत्मा की
छलते रहे अपने ही भ्रमों को..........
गिरती रही रश्मियां नई सुबह की
जन्मते रहे जुगनु
अदृश्य सम्भोग के...........
चुभता रहा अपराधबोध दिन बनकर
रात का सम्मोहन.........
पाते रहे मृत्यु छोटे-छोटे टुकडों में............
श्री............
जया जादवानी जी की कहानी 'घाट' से प्रभावित कविता.......
परिष्कृत करती है आत्मा
कितनी ही तहें खुलती हैं
एक के बाद एक.....
हर युग के घाट पर
अपना कुछ हिस्सा छोड़ती हुई......
घाट..... स्नेह का
प्रेम का
मृत्यु का......
और उस सम्मोहन का भी
जिसे बांधा था
उस असीमित रात में
और
खोजी थी एक नई लिपि......
स्वप्न सम्भोग की.......
तपता रहा संताप... जीवन और मृत्यु के बीच
जपते रहे नाम ........ एक दूसरे का
छूते रहे हर हद आत्मा की
छलते रहे अपने ही भ्रमों को..........
गिरती रही रश्मियां नई सुबह की
जन्मते रहे जुगनु
अदृश्य सम्भोग के...........
चुभता रहा अपराधबोध दिन बनकर
रात का सम्मोहन.........
पाते रहे मृत्यु छोटे-छोटे टुकडों में............
श्री............
जया जादवानी जी की कहानी 'घाट' से प्रभावित कविता.......
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