जिस्म की मिट्टी में गूंधी
एक दोपहर
सुन रही थी लोबान का संगीत
रेशे-रेशे से......
कामना के रंगों से रंगी जिज्ञासा
हर शह को खोजने की अभिलाषा
हर आह को पीने की चाहत
और संवाद............
संवाद जिस्मों की मिट्टी का
खुदा ने भी सुना..
उन दो हाथों की प्रार्थनाओं के बीच
अपने निर्माण पर हैरान था........
त्वचा रिसती रही, रिसती रही
बहाती रही मुक्ति......
जिस्मों के संवाद पर
कायनात ने एक गीत रचा
और रख दिया
ह्व्वा की कोख में......
मिट्टी मिल गयी मिट्टी में
संवाद संवाद में
और
प्रार्थना प्रार्थना में…...
बचा क्या था
क्या अब भी नही समझे..............
श्री..............
एक दोपहर
सुन रही थी लोबान का संगीत
रेशे-रेशे से......
कामना के रंगों से रंगी जिज्ञासा
हर शह को खोजने की अभिलाषा
हर आह को पीने की चाहत
और संवाद............
संवाद जिस्मों की मिट्टी का
खुदा ने भी सुना..
उन दो हाथों की प्रार्थनाओं के बीच
अपने निर्माण पर हैरान था........
त्वचा रिसती रही, रिसती रही
बहाती रही मुक्ति......
जिस्मों के संवाद पर
कायनात ने एक गीत रचा
और रख दिया
ह्व्वा की कोख में......
मिट्टी मिल गयी मिट्टी में
संवाद संवाद में
और
प्रार्थना प्रार्थना में…...
बचा क्या था
क्या अब भी नही समझे..............
श्री..............
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