बूढा होता एक द्वीप.....
लघुतम को समझते
स्वीकारते
सम्मान के हाथों पछताते.......
पाप को मरियम के सामने बुदबुदाते......
अकेले में रोते
स्थिर होते
काठ की इच्छाओं को परखते.....
स्वीकार करते
कि हर लघुतम का बोध है अनकहा आख्यान.......
किसी छिपी इच्छा से ही
बूंद और सागर के फासले को जाना जा सकता है
और किसी छिपी इच्छा से ही
मुक्त हुआ जा सकता है ....... पाप से..........
श्री..............
लघुतम को समझते
स्वीकारते
सम्मान के हाथों पछताते.......
पाप को मरियम के सामने बुदबुदाते......
अकेले में रोते
स्थिर होते
काठ की इच्छाओं को परखते.....
स्वीकार करते
कि हर लघुतम का बोध है अनकहा आख्यान.......
किसी छिपी इच्छा से ही
बूंद और सागर के फासले को जाना जा सकता है
और किसी छिपी इच्छा से ही
मुक्त हुआ जा सकता है ....... पाप से..........
श्री..............
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